Coriander Farming: बारिश के सीजन में किसान करें धनिया की खेती

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भारत देश को मसालों की भूमि के नाम से जाना जाता है। धनिया के बीज एवं पत्तियां भोजन को सुगंधित और अतिस्वादिष्ट बना देता है। धनिया, हमारे भारतीय भोजन का अभिन्न हिस्सा है। इसका महत्व न केवल खाने के स्वाद में है, बल्कि इसके बीज भी हमारे कृषि बाजार के लिए महत्वपूर्ण हैं। धनिया बीज में बहुत अधिक औषधीय गुण के रूप में उपयोग किए जाते हैं। मध्यप्रदेश में धनिया की खेती 1,16,607 है। म.प्र. के गुना, मंदसौर, शाजापुर, राजगढ, विदिशा, छिंदवाडा आदि प्रमुख धनिया उत्पादक जिले हैं। भारत धनिया का प्रमुख निर्यातक देश है। धनिया के निर्यात से विदेशी मुद्रा अर्जित की जाती है।

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धनिया की खेती कब करें Coriander farming in Summer:

धनिया एक रबी की फसल है जो अक्टूबर और नवंबर के मध्य की जाती है। कुछ क्षेत्रों में देर से आने वाली खरीफ की फसल कभी-कभी अगस्त-सितंबर में बोई जाती है। क्यारियाँ और नालियाँ बनाकर बुवाई करना चाहिए इससे इनकी जड़े मजबूत तथा मोटी होती है। धनिया की फसल का बीज अंकुरण 10 से 15 दिन में अंकुरित हो जाते हैं।

धनिया की खेती कैसे करें How to do coriander farming:

धनिया की बुवाई करने से पहले बीज को अच्छे से हल्का रगड़कर बीजो को दो भागो में तोड़ लें। इसके बाद खेत की 2 से 3 बार जुताई और ढेलों को तोड़ने व मिट्टी की नमी से बचने के लिए खेत में तुरंत बुवाई करनी चाहिए। खेत में रोटावेटर चलाए जिससे खाद उर्वरक मिट्टी में अच्छी तरह मिल जाये और भूमि समतल हो जाए।  धनिया की बोनी सीड ड्रील की मदद से कतारों में करना चाहिए। कतार से कतार की दूरी लगभग 30 से.मी. और पौधे से पौधे की दूरी 10-15 सें. मीं. रखें। बैक्टीरिया मिलाएं। मिश्रण को मिट्टी में लगभग 10 दिनों तक खुला रखें।

धनिया की खेती के लिये जलवायु, तापमान तथा मिट्टी:
धनिया की फसल अत्याधिक ठंड और पाला सहन नहीं कर सकती है। शुष्क वातावरण में धनिया की खेती अनुकूल है। धनिया की खेती के लिए अधिकतम तापमान लगभग 30-35 डिग्री सेल्सियस तथा न्यूनतम तापमान लगभग 19-21 डिग्री सेल्सियस उपयुक्त माना जाता है। धनिया की खेती के लिए दोमट मिट्टी सबसे उपर्युक्त होती है। धनिया की खेती अच्छी सिंचाई तथा जैविक पदार्थों की उपयुक्त मात्रा में सभी प्रकार की मिट्टी में की जा सकती है। धनिया की फसल के लिये उपर्युक्त पी.एच. लगभग 6.0 से 8.5 के बीच होना चाहिए।

धनिया की प्रमुख किस्में:

  1. कोकण कस्तूरी – यह प्रजाति मुख्यतः रबी की फसल है जिसमें खुशबू चौड़ी पत्तियाँ एवं 30 से 40 सेमी. ऊँचाई वाली होती हैं। यह 30 से 35 दिन में कटने  के लिये तैयार हो जाती है जिसकी अनुमानित पैदावार 36 क्विंटल प्रति एकड़ है।
  2. अर्का ईशा – इस प्रजाति में विटामिन की भरपूर मात्रा पाई जाती है तथा सुगंध के साथ चौड़ी पत्ती और झाड़ियों वाले पौधे होते हैं। यह 65 से 75 दिन में तैयार हो जाती हैं जिसकी अनुमानित पैदावार 12 क्विंटल प्रति एकड़ है।
  3. हिसार सुगंध – इस किस्म के पौधे मध्यम ऊँचाई मध्यम आकार के दाने उकठा स्टेमगाल प्रतिरोधक होते हैं। यह 120 से 125 दिन में तैयार हो जाती हैं जिसकी अनुमानित पैदावार 19-20 क्विंटल प्रति एकड़ है। 
  4. कुंभराज – इस किस्म के पौधे मध्यम ऊँचाई दाने छोटे, सफेद फूल, उकठा, स्अेमगाल, भभूतिया सहनशील होते हैं। यह 115 से 120 दिन में तैयार हो जाती हैं जिसकी अनुमानित पैदावार 19-20 क्विंटल प्रति एकड़ है।

धनिया फसल की सिंचाई: धनिया की फसल के लिए पहली सिंचाई बुआई के तुरन्त बाद तथा दूसरी सिंचाई अंकुरण के 8 से 10 दिनों के बाद करें। रबी की फसल के लिए 4 से 5 सिंचाई करनी चाहिए। सिंचाई के लिये स्प्रिंकलर विधी से हलकी तथा नियमित सिंचाई करें। इसके लिए लगभग 80 से 100 मिली पानी उपयुक्त है और ज्यादा पानी की मात्रा फसल को नुकसान पहुँचाता है।

खाद एवं उर्वरक: असिंचित धनिया की अच्छी उपज लेने के लिए सडी गोबर की खाद 15-20 टन/हे. के साथ 40 कि.ग्रा. नाइट्रोजन, 30 कि.ग्रा. फास्फोरस, 20 कि.ग्रा. पोटाश तथा 20 कि.ग्रा. सल्फर प्रति हेक्टेयर डालें तथा सिंचित फसल के लिये 60 कि.ग्रा. नाइट्रोजन, 40 कि.ग्रा. फास्फोरस, 20 कि.ग्रा. पोटाश तथा 20 कि.ग्रा. सल्फर, प्रति हेक्टेयर की दर से उपयोग करें।

रोग तथा प्रबंधन:

  1. माहु रोग – माहु रोग पौधे के निचली सतह के नीचे तथा कोसल सिरे में लगते हैं। यह कीट पत्तियों को चूसकर पौधे को कमजोर कर देते हैं, और काले रंग के छोटे छिद्र आ जाते हैं। इस रोग के निवारण के लिये ट्राईसैक्लोजोन 120 ग्राम घोल बनाकर छिडकाव करें।
  2. उकठा/जड़ सड़न रोग- यह रोग अधिक तापमान तथा मिट्टी में अधिक नमी से लगता है। इस रोग से पत्तियाँ पीली तथा पौधे सूखकर मर जाते हैं। इस रोग के निवारण के लिए कम सिंचाई, ग्रीष्मकालीन गहरी जुताई एवं उचित फसल चक्र अपनाएं।
  3. सुंडी रोग – यह रोग ठंड के मौसम में खासकर दिसम्बर ,जनवरी व फरवरी में पनपता है। इस रोग से पौधा मुरझा जाते हैं। अच्छे बीजों का चयन करें। सरसों की खली नीम की पत्ती और सूखे गोबर के कंडो की राख का छिड़काव करें। फसल बुवाई के समय नियमित फसल की दूरी का चयन करें।

धनिया फसल की कटाई: धनिया की फसल लगभग 45 से 50 दिन में पक जाती है। धनिया हरा से चमकीला भूरा कलर होने पर कटाई करना चाहिए। धनिया की फसल पूरी तरह से पक जाये तो इसके सूखने के बाद तोड़ने के लिए तैयार हो जाती है और तोड़ने के बाद इसे अच्छे साफ पानी से धोना चाहिए।

उपज तथा भण्डारण: वैज्ञानिक तकनीकि से सिंचित धनिया की खेती करने पर 15-18 क्विंटल बीज एवं 100-125 क्विंटल पत्तियों की उपज तथा असिंचित फसल की 5-7 क्विंटल/हे. उपज प्राप्त होती है। धनिया बीज का भण्डारण पतले जूट के बोरों में करना चाहिए। जमीन पर लकड़ी के गट्टों पर बोरों को रखना चाहिए। बोरियों मे भरकर रखा जा सकता है।