Radish cultivation: मूली की खेती कैसे करें, किस्मों का चयन, बुवाई का सही समय, देखभाल के टिप्स और अधिक जानें

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मूली की फसल जल्दी तैयार होने वाली जायद के रूप में बड़ी आसानी से उगाया जा सकता है। मूली की जड़ों में विटामिन तथा लवण भरपूर मात्रा में पाया जाता है। देश के शुष्क समशीतोष्ण तथा पर्वतीय क्षेत्रों में इसे दोनों ग्रीष्म तथा शीत ऋतु में उगाई जाती है। मूली की खेती पूरे भारत में व्यापक पैमाने पर की जाती है। इसकी खेती पश्चिम बंगाल, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, बिहार, पंजाब, असम, हरियाणा एवं उत्तर प्रदेश में अधिकतर की जाती है।

मूली की खेती Radish cultivation:
मूली का उपयोग सलाद व सब्जी के रूप में किया जाता है इसमें तीखा स्वाद होता है। इसका उपयोग नाश्ते में पराठे के रूप में भी किया जाता है। इसकी पत्तियों की भी सब्जी बनाई जाती है। मूली विटामिन सी एवं खनीज तत्व का अच्छा स्त्रोत है। मूली लिवर एवं पीलिया मरीजों के लिए भी अनुसंशित है।

मूली की खेती लिए जलवायु, मिट्टी तथा भूमि की तैयारी Climate, soil and land preparation for radish cultivation:
मूली की खेती के लिये ठण्डी जलवायु बेहतर होती है। मूली की खेती के लिए 10-150C. तापमान सर्वोत्तम माना जाता है। मूली सभी प्रकार की मिट्टी उपयुक्त रहती है लेकिन रेतीली दोमट मिट्टी अधिक उपयुक्त रहती है। मूली के लिए गहरी जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करने के बाद 2 से 3 बार कल्टीवेटर चलाकर भूमि को समतल करके बुवाई करें।

मूली की उन्नत किस्में Improved varieties of radish:
पूसा हिमानी- मूली की यह किस्म 1970 में विकसित की गई। इसकी जड़ें करीब 30-35 सेंमी. लम्बी, मोटी, तीखी, सफेद एवं टोप हरे होते है। हल्का तीखा स्वाद एवं मीठा फ्लेवर, बोने के 50 से 60 दिन में परिपक्व, दिसम्बर से फरवरी में तैयार यह किस्म बुवाई के 55 से 60 दिन में तैयार हो जाती है। इसकी औसतन उपज 32-5 टन/हेक्टेयर होती है।
पूसा रेशमी – मूली की यह किस्म पूरे भारत में उगाई जाती है। इसकी जड़ें करीब 30-35 सेंमी. लम्बी, मध्यम मोटाई, सफेद मोटी, तीखी होती है। यह किस्म बुवाई के लगभग 55 से 60 दिन में तैयार हो जाती है। इसकी औसतन उपज 32.5 प्रति टन हेक्टेयर होती है।
पूसा चेतकी – मूली की यह किस्म सम्पूर्ण भारत में उगाई जाती है और इसे 1988 में विकसित किया गया। यह सफेद मूसली, नरम, मुलायम, ग्रीष्म-ऋतु की फसल में कम तीखी जड़ 15-22 सेंमी. लम्बी, मोटी जड़, और 40-45 दिनों में तैयार एवं अप्रैल-अगस्त के लिये उपयुक्त होती है। इसकी औसतन उपज 250 कुन्तल प्रति हेक्टेयर प्राप्त होती है।
खाद एवं उर्वरक Manure and Fertilizer:
मूली की खेती में लगभग 100-150 क्विंटल गोबर की खाद या कम्पोस्ट, 100 किलो नाइट्रोजन, 50 किलो फास्फोरस और 100 किलो पोटाष की मात्रा प्रति हेक्टेयर आवश्यक है। गोबर की खाद, फास्फोरस तथा पोटाष खेत की तैयारी के समय तथा नाइट्रोजन दो भागों में बुवाई के 15 और 30 दिन बाद देना चाहिए।

मूली की खेती कब करें When to radish cultivation: मूली की खेती पूरे साल की जाती है लेकिन सितम्बर से जनवरी माह तक बुवाई करने से उपज अधिक मिलती है।

मूली की बुवाई कैसे करें: कतारों में- मूली की बुवाई अच्छी तरह तैयार लगभग 30 से.मी. की दूरी पर कतारें बना लें और इन कतारों में बीज को करीब 3 सें.मी. गहराई में बुवाई करें। बीज के अंकुरित होने पर जब पौधों में दो पत्तियाँ जायें तब 10-12 से.मी. की दूरी छोड़कर दूसरे पौधों को निकाल देते हैं।

मेड़ों पर- इस विधि में क्यारियों में 30 सें.मी. की दूरी पर 15-20 सें.मी. ऊँची मेड़ बनाकर बीज को 3-4 से.मी. की गहराई पर बुवाई की जाती है। बीज के अंकुरित होने पर जब पौधों में दो पत्तियाँ आ जाए तब पौधों को करीब 10-12 सें.मी. की दूरी छोड़कर बाकी पौधो को निकाल दिया जाता है। इस विधि से मूली की जड़ की बढ़वार अच्छी होती हैं और मूली मुलायम रहती है।

मूली की खेती में सिंचाई एवं जल निकासी Irrigation and drainage in radish cultivation: मूली की बुवाई करते समय मिट्टी में नमी की कमी होने पर एक हल्की सी सिंचाई करनी चाहिए। वर्षा ऋतु के दौरान मूली की फसल मे सिंचाई की जरूरत नहीं पड़ती है लेकिन जल निकासी पर ध्यान देना जरूरी होता है। गर्मी के समय फसल में 3-4 दिनों के पश्चात् सिंचाई की आवश्यकता होती है। शरदकालीन के समय फसल में 8-10 दिन के अंतराल पर सिंचाई करनी चाहिए। मेड़ों पर सिंचाई हमेशा आधी मेड़ पर ही करनी चाहिए जिससे मेड़ पर नमी बनी रहे।
मूली में लगने वाले प्रमुख कीट व रोग:

माहू रोग – माही रोग छोटे सफेद कीट होते हैं जो पत्तियों का रस चूस लेते हैं जिससे पत्तियाँ सिकुड जाती हैं। इसके प्रकोप से फसल बिकने योग्य नहीं रह जाती है। इस कीट के नियंत्रण के लिये मैलाथियान 2 मि.ली. प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करने से लाभ होता है। इसके अलावा 4 प्रतिशत नीम गिरी के घोल में किसी चिपकने वाला पदार्थ जैसे चिपको या सेण्ड़ोविट के साथ छिड़काव उपयोगी है।
रोयेंदार सूंडी – यह सूड़ी भूरे रंग का रोयेदार होता है व ज्यादा संख्या में एक जगह पत्तियों को खाते हैं। इसके नियंत्रण के लिए मैलाथियान की लगभग 10 प्रतिशत चूर्ण 20 से 22 किलो प्रति हेक्टेयर की दर से सुबह के समय डालनी चाहिए।
अल्टेरनेरिया झुलसा – यह रोग जनवरी से मार्च के दौरान ज्यादा लगता है। पत्तियों पर छोटे गहरे काले धब्बे बन जाते हैं। फल पर अण्डाकार से लंबे धब्बे दिखाई देते हैं। इसके नियंत्रण के लिये कैप्टान 2.5 ग्राम प्रति किलो बीज की दर से बीजोपचार करें और नीचे की पत्तियों को तोड़कर जला दें।
खुदाई एवं उपज: मूली की जड़े जब पूरी तरह से विकसित होने पर मुलायम अवस्था में ही खुदाई कर लेना चाहिए। मूली की पैदावार इसकी उन्नत किस्मों, खाद व उर्वरक तथा पर निर्भर करती है। मूली की औसतन पैदावार 200 क्विंटल प्रति हेक्टेयर के लगभग होती है।