पॉलीहाउस खेती क्या है (Polyhouse Farming)
Polyhouse Farming को आम भाषा में ग्रीनहाउस खेती बोलते हैं। यह एक प्रकार की घर जैसा करके खेती करा जाता हैं, जिसमें फुल से लेकर सब्जियों तक का खेती करा जाता है । पॉलीहाउस फार्मिंग को प्लास्टिक की छत के नीचे किया जाता है।
पॉली हाउस (Polyhouse)
भारत को एक कृषि प्रधान देश के रूप में जाना जाता है और यहाँ के अधिकतर लोग कृषि के माध्यम से ही अपना जीवन यापन करते है | हालाँकि यहाँ फसलों का उत्पादन प्राकृतिक मानसून पर निर्भर होता है, जिसके कारण यहाँ कभी-कभी पैदावार काफी अच्छी हो जाती है और कभी-कभी उप्तापदन बिल्कुल न के बराबर होता है | इस गंभीर समस्या से निजात पाने के लिए वर्तमान में किसानों द्वारा पॉली हाउस के माध्यम से तकनीकी रूप से कृषि करने लगे है |
फसलों के बेहतर उत्पादन के लिए पॉली हाउस अत्यधिक कारगर सिद्ध हुआ है | आज देश के प्रत्येक कोनें में किसानों द्वारा फसलों के उगानें में पॉली हाउस तकनीक का इस्तेमाल किया जा रहा है | पॉली हाउस क्या होता है ? इसके बारें में जानकारी देने के साथ ही आपको यहाँ Polyhouse बनाने के लिए सब्सिडी, खर्च और लोन के बारें में पूरी जानकारी विधिवत रूप से दी जा रही है |
पॉलीहाउस एक प्रकार का ग्रीनहाउस है, जहां विशेष प्रकार की पॉलीथिन शीट का उपयोग कवरिंग सामग्री के रूप में किया जाता है | जिसके तहत फसलों को आंशिक रूप या पूरी तरह से नियंत्रित जलवायु परिस्थितियों में उगाया जा सकता है। आधुनिक समय के पॉलीहाउस जीआई स्टील फ्रेम पर बने होते हैं और प्लास्टिक से ढके होते हैं | जो एल्यूमीनियम ग्रिपर के साथ फ्रेम पर फिक्स होते हैं। कवर करने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली सफेद प्लास्टिक की फिल्म उच्च गुणवत्ता की होती है | पॉलीहाउस के अंदर पानी देने के उद्देश्य से ज्यादातर ड्रिप सिंचाई प्रणाली स्थापित की जाती है।
दूसरे शब्दों में, वर्तमान समय में आधुनिक ढ़ंग से कृषि करनें अर्थात फसलों को उगानें के लिए एक विशेष प्रकार की पालीथीन या चादर से ढका हुआ घर होता है | इस घर के वातावरण को फसलों अनुकूल कर हर मौसम में विभिन्न प्रकार की सब्जियों का उत्पादन किया जाता है | पाली हाउस में बाहरी वातावरण का प्रभाव नही पड़ता है | पॉलीहाउस को शेडनेट हाउस, ग्रीन हाउस और नेट हाउस आदि नामों से जाना जाता है | दरअसल पॉलीहाउस खेती खेती का एक आधुनिक तरीका है, जिसमें हम हानिकारक कीटनाशकों और अन्य रसायनों के अधिक उपयोग के बिना उच्च पोषक मूल्यों के साथ अधिक पैदावार प्राप्त कर सकते है |
पॉलीहाउस खेती एक कृषि पद्धति है, जिसमें पौधों को नियंत्रित परिस्थितियों में उगाया जाता है। इसमें किसान पौधे की जरूरत और बाहरी जलवायु परिस्थितियों के अनुसार तापमान और आर्द्रता के स्तर को नियंत्रित कर सकते हैं। पॉलीहाउस पौधों को लगातार बदलते मौसम और गर्मी, धूप और हवा जैसी जलवायु परिस्थितियों से बचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। यह पौधों को वर्ष के किसी भी समय बढ़ने में मदद करता है । पॉलीहाउस खेती में उपज को प्रभावित करने वाले हर कारक को नियंत्रित किया जा सकता है।
पॉलीहाउस को पॉलीटनल, ग्रीन-हाउस या ओवर-हेड टनल के रूप में भी जाना जाता है। जिसका आंतरिक वातावरण जल्दी गर्म हो जाता है क्योंकि सौर विकिरण पॉलीहाउस में मौजूद मिट्टी, पौधों और अन्य वस्तुओं को गर्म करते हैं। पॉलीहाउस की छत और दीवारें आंतरिक गर्मी को रोक कर रखती हैं। जिस कारण पॉलीहाउस से निकलने वाली गर्मी की प्रक्रिया बहुत धीमी होती है जो पौधों और मिट्टी को गर्म करती रहती है। हालाँकि कई ऐसे स्वचालित उपकरण हैं जिनका उपयोग आंतरिक आर्द्रता, तापमान और वेंटिलेशन को नियंत्रित करने के लिए किया जाता है।
पॉलीहाउस की संरचना स्टील से बनाई जाती है जिसे प्लास्टिक की शीट या हरी नेट से कवर किया जाता है। एक बार बनाई गई पॉलीहाउस की संरचना को 10 सालों तक आपकी फसल को कीट-रोगों से तो दूर रहेगी ही, इसके साथ-साथ मौसम की मार से भी बचायेगी। इस शानदार तकनीक को अब भारतीय किसान बिना किसी शर्त के और बहुत ही कम खर्चे में अपना बना सकते हैं, जिसमें सरकार आर्थिक अनुदान भी देती है।
फायदे की तकनीक है पॉलीहाउस में खेती
आपको बता दें कि पॉलीहाउस यानी संरक्षित ढांचे में सब्जियों की खेती करने के जितने लाभ गिनाए जाएं उतने कम हैं।
ग्रीनहाउस पद्धति में खेती का सबसे बड़ा फायदा ये है कि इसमें आप मौसमी और बेमौसमी सब्जियों को बेहद आसानी से उगा सकते हैं।
पॉलीहाउस में खेती करने से फसल में कीट और बीमारियों की संभावना तो कम रहती ही है, साथ ही इसमें रसायनों और उर्वरकों की भी कोई खास जरूरत नहीं होती। सिर्फ गोबर की काद या वर्मी कंपोस्ट जैसी कम लागत के जरियों से भी अच्छी और गुणवत्तापूर्ण उपज ले सकते हैं।
पॉलीहाउस में उगने वाली फसल सर्दी, गर्मी, तेज हवा, भारी बारिश और ओलों की मार से भी बची रहती है।
इसकी उत्पादन इकाई लगाने से आपका कीटनाशकों का खर्चा तो बचेगा ही, पानी का खर्च भी बेहद कम आयेगा। इसमें खेतों के मुकाबले मानव श्रम की भी काफी बचत होगी।
पॉलीहाउस में क्या उगाएं?
वर्तमान में ज्यादातर किसान पॉलीहाउस में टमाटर, खीरा और शिमला मिर्च की खेती को ज्यादा तवज्जो दे रहे हैं, क्योंकि उनकी मांग सालभर बाजार में बनी रहती है। इनके अलावा, पत्तेदार सब्जियां, कद्दू वर्गीय सब्जियां, गोभी वर्गीय सब्जियां और टमाटर वर्गीय सब्जियां पॉलीहाउस में लगाकर भी आप अच्छा लाभ कमा सकते हैं। पॉलीहाउस में किसान ऑफ सीजन सब्जियों सब्जी के साथ गेंदा, जरबेर, गुलदाउदी, रजनीगंधा, कारनेशन, गुलाब, एन्थूरियम आदि फूलों की खेती भी कर सकते हैं। इस संरक्षित ढांचे में खेती करने से गुणवत्ता और उत्पादकता तो बढेगी ही, साथ ही इसके जरिए खुले खेतों के मुकाबले 5 से 10 गुना ज्यादा पैदावार और आमदनी प्राप्त कर सकते हैं।
भारत में ग्रीनहाउस खेती तेजी से लोकप्रियता हासिल कर रही है। पॉलीहाउस फार्मिंग से अच्छा मुनाफा कमाया जा सकता है। ग्रीनहाउस एक महंगा मामला लग सकता है। हालाँकि, सरकारें सब्सिडी प्रदान करती हैं। यहां ग्रीनहाउस तकनीक, ग्रीनहाउस का निर्माण और रखरखाव के बारे में पूरी जानकारी दी गई है।
ग्रीनहाउस और पॉलीहाउस के बीच अंतर
ग्रीनहाउस किसी प्रकार की पारदर्शी सामग्री से बना होता है जिससे घर के अंदर सूक्ष्म जलवायु का निर्माण होता है। माइक्रॉक्लाइमेट बनाने के लिए विभिन्न सामग्रियों जैसे कांच, लकड़ी, पॉलीथीन आदि का उपयोग ग्रीनहाउस कवर के रूप में किया जाता है।
पॉलीहाउस एक प्रकार का ग्रीन हाउस है जहां पॉलीथीन को कवर के रूप में उपयोग किया जाता है। भारत में, निर्माण की कम लागत के कारण पॉलीहाउस खेती सबसे लोकप्रिय ग्रीनहाउस तकनीक है। लैथ हाउस एक अन्य ग्रीनहाउस तकनीक है जहाँ लकड़ी को आवरण के रूप में उपयोग किया जाता है।
पॉली हाउस ग्लास हाउस या ग्रीनहाउस की तुलना में किफायती है लेकिन बाद में पॉलीहाउस की तुलना में अधिक टिकाऊ होता है।
पॉलीहाउस खेती के लिए उपयुक्त फसलें
फल: पपीता, स्ट्रॉबेरी आदि।
सब्जियां: करेला, गोभी, शिमला मिर्च, रंगीन शिमला मिर्च, फूलगोभी, मिर्च, धनिया, भिंडी, प्याज, मूली, पालक, टमाटर आदि।
फूल: कार्नेशन, गुलदाउदी, जरबेरा, ग्लेडियोलस, गेंदा, आर्किड, गुलाब आदि।
पॉलीहाउस की खेती में इन बातों का रखें खास ख्याल
घटती जोत और अधिक मुनाफे के चलते किसान भाइयों के लिए पॉलीहाउस (polyhouse farming) आय सृजन का उत्तम स्रोत है। बेशक संरक्षित खेती में लाभ और उपज का प्रतिशत साधारण खेती की तरीकों से ज्यादा है। लेकिन संरक्षित खेती करने वाले किसानों को कुछ बातों का खास ख्याल रखना होगा। आइए इस बारे में विस्तार से जानते हैं। https://gskvoice.com/archives/10266
सर्दियों के समय सुरक्षा ढांचे के शेडनेट यानी पर्दों को दोपहर में 2-3 घंटे के लिए खोल देना चाहिये। ऐसा करने से नमी से पैदा होने वाले कीट-रोगों की संभावना कम होती है और फसल को भी सूरज के प्रकाश से पोषण मिल जाता है।
पॉलीहाउस की नर्सरी में नमी के साथ-साथ पोषण की जरूरत होती है, इसलिए टपक सिंचाई के जरिए पानी में उर्वरकों का घोल बनाकर नर्सरी में दें, इससे नमी और पोषण दोनों की कमी पूरी हो जायेगी।
पॉलीहाउस या ग्रीन हाउस को कटने-फटने से बचाने का प्रबंधन कार्य भी करते रहना चाहिये, क्योंकि खुली फसल में कीट-रोग जल्दी ही घर कर जाते हैं। कटे-फटे स्थान की सिलाई करें और समय-समय पर पॉलीहाउस की पॉली को बदलते रहें।
पॉलीहाउस की गुणवत्ता का अच्छा होना बेहद जरूरी है क्योंकि सस्ते और जुगाड़ साधनों में मरम्मत का खर्चा ज्यादा आयेगा। इसलिए अच्छी गुणवत्ता का ढांचा ही आपको कम खर्च में अच्छा लाभ दे सकता है।
संरक्षित खेती से अगर आप अच्छा लाभ कमाना चाहते हैं, तो अच्छे रखरखाव की भी सख्त जरूरत होती है। ऐसे में सिंचाई के लिए अच्छा पानी, उत्तम भूमि, अच्छी किस्म के बीज, नर्सरी और तकनीक प्रबंधन की भी आवश्यकता होती है।
संरक्षित खेती (integrated farming) के लिए ढांचे या नर्सरी को 1-2 फीट ऊपर ही तैयार करें, जिससे वर्षा का पानी फसल को प्रभावित न करें जल निकासी भी सुनिश्चित हो सके।
अच्छी आमदनी अर्जित करने के लिए अपने पॉली हाउस में उन्हीं सब्जियों की खेती करें, जिनकी मांग बाजार में अधिक हो या फिर बाजार में आपकी मांग का उचित भाव मिल सके। https://gskvoice.com/archives/10266
सबसे जरूरी बात, पॉली हाउस या संरक्षित ढांचे का निर्माण उस स्थान पर करवायें, जहां से मंडी या बाजार निकट पड़ता हो। इससे उपज को बिक्री के लिए बाजार ले जाने में लागत कम आएगी और सब्जियों को सुरक्षित और आसानी से बाजार तक पहुंचाया जा सके।